27.2 C
Noida
Saturday, April 19, 2025

Download App

सपा की गठबंधन सियासत में बड़ी चुनौती होगा सीटों का बंटवारा

न्यूज़ डेस्क: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही चुनाव की तस्वीर भी करीब-करीब साफ होने लगी है। यह लगभग तय हो गया है कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी एकला चलो की राह पर आगे बढे़ंगी, वहीं भारतीय जनता पार्टी नये दोस्त बनाने की बजाए अपने पुराने सहयोगियों के सहारे चुनाव में दम आजमायेगी। संजय निषाद की ‘निषाद पार्टी’ भाजपा के साथ आई है तो ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बीजेपी से छिटक कर सपा में चली गई है। 2017 में बीजेपी ने अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यह गठबंधन टूट गया था. हालांकि, इस बार बीजेपी ने सपा-बसपा गठबंधन से निषाद पार्टी को निकालने में सफलता हासिल कर ली है। निषाद पार्टी में निषाद जाति के अलावा उससे जुड़ी मल्लाह, केवट, धीवर, बिंद, कश्यप और दूसरी जातियों को अच्छा ख़ासा ग़ैर-यादव वोट बैंक समझा जाता है। साल 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक परिदृश्य में आई निषाद पार्टी ने ख़ुद को नदियों से जुड़ी हुई पिछड़ी जातियों की आवाज़ कहा था. उनकी मांग थी कि उनकी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में दर्ज कराया जाए। 2017 में इसने पूर्वी उत्तर प्रदेश की 72 सीटों पर 5.40 लाख वोट हासिल किए थे लेकिन कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई थी। 2018 में निषाद पार्टी ने सपा-बसपा को समर्थन दिया और इसने लोकसभा उप-चुनाव में गोरखपुर और फूलपुर सीटों को जीतने में मदद की। इस दौरान प्रवीण निषाद ने सपा के टिकट पर गोरखपुर सीट को जीत लिया था जिस पर योगी आदित्यनाथ चुनकर आते रहे थे।

Poonam Advt.
Advt.

बात आम आदमी पार्टी (आप) की कि जाए तो जो ‘आप’ काफी तेजी से यूपी में पैर पसारने की कोशिश कर रही थी, चुनाव से कुछ माह पूर्व ही उसके पॉव उखड़ने लगे हैं। अब ‘आप’ समाजवादी पार्टी की तरफ पींगे बढ़ाने में लगी है। राष्ट्रीय लोकदल का तो सपा से गठबंधन भी हो गया है। समाजवादी पार्टी सभी छोटे-छोटे दलों के लिए अपने सियासी दरवाजे खोल रखे हैं। 2-4 फीसदी आबादी के लम्बरदार बने छोटे-छोटे दल जिनकी पहचान जातीय आधार तक ही सीमित है उनके लिए समाजवादी पार्टी राजनीति का नया ठिकाना बन गया है। सपा ने पश्चिमी यूपी में जाटों के समर्थन वाले राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी, मौर्या-कुशवाहा के समर्थन वाले ‘महान दल’ के नेता केशव देव मौर्या और संजय चौहान की ’जनवादी पार्टी’ (समाजवादी) के नेता नौनिया चौहान एवं अपना दल (कृष्णा पटेल गुट) के साथ गठबंधन किया है। चचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से भी गठबंधन के संकेत अखिलेश यादव दे रहे हैं। दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव छोटे-छोटे दलों को जोड़कर बड़ा खेल खेलने का सपना देख रहे हैं।

खैर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने में दिलेरी जरूर दिखाई है, परंतु उनके लिए आगे की राह आसान नहीं लग रही है। छोटे दल जिस तरह से टिकट के लिए दावेदारी ठोंक रहे हैं, उसके आधार पर तो यही लगता है कि टिकट बंटवारे में समाजवादी पार्टी के खातें में 250-275 सीटें ही आ जाएं तो बहुत होगा। ऐसा होगा तो समाजवादी पार्टी का अपने बल पर चुनाव जीतने का सपना चुनाव से पहले ही टूट जाएगा। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के जो पुराने कार्यकर्ता और नेता टिकट की होड़ में लगे हैं उनकी विधान सभा सीट यदि सहयोगी दल के पाले में चली जाएगी तो यह नेता बगावत का झंडा उठाने में देरी नहीं करेंगे। इस बगावत को गैर समाजवादी दल हवा दे सकते हैं तो हो सकता है कई नेता बगावत करके अन्य दलों का दामन थाम लें। इससे पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है।

Advt.

बहरहाल, भविष्य में यूपी की राजनीति जिस करवट भी बैठे, लेकिन इस समय तो अखिलेश यादव ही सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। यदि यूपी में ओवैसी का सिक्का नहीं चला तो मुस्लिम वोट एकमुश्त समाजवादी पार्टी की झोली में पड़ सकते हैं। उधर, अपने बल पर पुनः सत्ता में वापसी का सपना देख रही बीजेपी और उसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधों पर यूपी चुनाव जीतने की जिम्मेदारी इस लिए भी अधिक है क्योंकि 2022 के नतीजों का प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव में भी असर आएगा। यदि यूपी में बीजेपी की सरकार होगी तो मोदी के लिए 2024 का चुनाव जीतने की राह काफी आसान हो जाएगी। लिहाज से भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना बहुत जरूरी है। इसीलिए बीजेपी आलाकमान ने यूपी में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। फिलहाल, बीजेपी के लिए राहत वाली बात यह है कि यूपी का चुनावी गणित अभी काफी हद तक भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा हैं, लेकिन समय के साथ यह बदल भी सकते हैं। वहीं, सपा की बात करें, तो पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की साख दांव पर लगी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर हार का बोझ उन्हें अपने ही कंधों पर उठाना पड़ा। क्योंकि, कांग्रेस तो वैसे ही प्रदेश में तकरीबन खत्म हो चुकी थी। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ गठबंधन का नुकसान भी सपा के खाते में ही गया था।

इस नफा-नुकसान के अलावा यूपी में एक और चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या योगी और अखिलेश भी विधान सभा चुनाव में प्रत्याशी होंगे? हाल ही में योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने की खबरें सामने आई थीं। कहा जा रहा है कि भाजपा इस बार प्रदेश के कई बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ाकर बड़ा संदेश देना चाहती है। वैसे, भाजपा जो संदेश देना चाहती है, वो शायद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक नहीं पहुंचा है। क्योंकि, सपा की ओर से अभी तक अखिलेश के चुनाव लड़ने की कोई खबर सामने नहीं आई है। बताते चले 2017 में योगी आदित्यनाथ और 2012 में अखिलेश यादव दोनों ही नेता मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए थे। तो, इस बार भी इस बात की संभावना बहुत हद तक बढ़ जाती है कि योगी और अखिलेश चुनाव ही न लड़ें। और जनता की अदालत में जाने की जगह फिर से उच्च सदन की राह पकड़ लें। ताकि यह नेता पार्टी के अन्य नेताओं को जिताने में पूरा योगदान दे सकें। हालांकि, राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए, तो दोनों ही नेताओं के सामने खुद को साबित करने की चुनौती नही है। क्योंकि, ये दोनों ही सांसद रहे हैं, तो योगी और अखिलेश के लिए विधानसभा चुनाव जीतना कोई बड़ी बात नजर नहीं आती है।

लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा और सीएम योगी के सामने सबसे बड़े चैलेंजर के तौर पर अखिलेश यादव का नाम सामने आ रहा है। अखिलेश यादव सपा को भाजपा के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी के तौर पर पेश कर रहे हैं। अखिलेश ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में किए गए विकास कार्यों के सहारे भाजपा को केवल अपनी सरकार के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करने वाली पार्टी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के साथ ही अपराधियों को प्रदेश छोड़ने की जो चुनौती दी थी। उसे योगी आज भी अपना तुरूप का इक्का मानते हैं। भ्रष्टाचार से लेकर माफियाओं तक के खिलाफ सीएम योगी की जीरो टॉलरेंस नीति काफी सुर्खियों में रही है। एंटी रोमियो स्कवॉड से शुरूआत कर वो अब जनसंख्या नियंत्रण कानून तक आ चुके हैं। सीएम योगी का मानना है कि उन्हें हर तबके के लोग पसंद करते हैं।

सम्बंधित खबर

Delhi CM Rekha Gupta Celebrates Baisakhi with YPSF, Says ‘I Am Punjabi by Nature’

  New Delhi: The festival of Baisakhi was celebrated in the capital, organized by the Young Progressive Sikh Forum (YPSF) at the iconic Bellamonde Hotel....

डॉ. गुरमीत सिंह को ESRDS-फ्रांस के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में शामिल किया गया – भारत के पहले सिख बने

नई दिल्ली :  भारत के लिए यह एक गौरवशाली क्षण है कि बेल्लामोंडे होटल्स के चेयरमैन डॉ. गुरमीत सिंह को Ecole Supérieure Robert de...

भाजपा प्रत्याशी अतुल भातखलकर ने भरी चुनावी हुंकार समर्थको के साथ नामंकन दाखिल किया

Mumbai " भारतीय जनता पार्टी ने कांदिवली पूर्व से मौजूदा विधायक अतुल भातखलकर को तीसरी बार उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है। इसके बाद...

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Stay Connected

5,058फैंसलाइक करें
85फॉलोवरफॉलो करें
0सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

Latest Articles

Delhi CM Rekha Gupta Celebrates Baisakhi with YPSF, Says ‘I Am Punjabi by Nature’

  New Delhi: The festival of Baisakhi was celebrated in the capital, organized by the Young Progressive Sikh Forum (YPSF) at the iconic Bellamonde Hotel....

डॉ. गुरमीत सिंह को ESRDS-फ्रांस के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में शामिल किया गया – भारत के पहले सिख बने

नई दिल्ली :  भारत के लिए यह एक गौरवशाली क्षण है कि बेल्लामोंडे होटल्स के चेयरमैन डॉ. गुरमीत सिंह को Ecole Supérieure Robert de...

भाजपा प्रत्याशी अतुल भातखलकर ने भरी चुनावी हुंकार समर्थको के साथ नामंकन दाखिल किया

Mumbai " भारतीय जनता पार्टी ने कांदिवली पूर्व से मौजूदा विधायक अतुल भातखलकर को तीसरी बार उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है। इसके बाद...

अयोध्या में लता मंगेशकर चौक का सीएम योगी ने किया उद्घाटन

न्यूज़ डेस्क: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को दिवंगत गायिका लता मंगेशकर की 93वीं जयंती पर अयोध्या में उनके नाम से चौक का उद्घाटन...