राफेल लड़ाकू विमान को लेकर फ्रांस के साथ हुई डील भारत में राजनीतिक बवाल का कारण बनी है. अब कैग की रिपोर्ट सामने आने के बाद एक बार फिर इस मसले पर सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं.
राफेल लड़ाकू विमान को लेकर एक बार फिर देश में राजनीतिक घमासान छिड़ता हुआ दिख रहा है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के द्वारा राफेल पर दी गई रिपोर्ट के बाद विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर है. रिपोर्ट में दावा है कि समझौते के तहत दसॉल्ट ने अभी तक तकनीक ट्रांसफर को DRDO तक नहीं पहुंचाया है. यही मुद्दा अब विपक्ष ने लपक लिया है.
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने गुरुवार को इस मसले पर ट्वीट किया. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी डिफेंस डील की क्रोनोलॉजी खुलना जारी है. CAG रिपोर्ट ने स्वीकारा है कि राफेल ऑफसेट में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पूरा नहीं हुआ है. पहले राफेल का मेक इन इंडिया से मेक इन फ्रांस हुआ और अब DRDP को टेक ट्रांसफर भी नहीं हुआ. लेकिन मोदीजी कहेंगे – सब चंगा सी.
सुरजेवाला के अलावा पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इसको लेकर सवाल खड़े किए. पी. चिदंबरम ने लिखा कि CAG ने पाया कि राफेल विमान के विक्रेताओं ने ऑफसेट अनुबंध के तहत ‘प्रौद्योगिकी हस्तांतरण’ की पुष्टि नहीं की है. ऑफसेट दायित्वों को 23-9-2019 को शुरू होना चाहिए था और पहली वार्षिक प्रतिबद्धता 23-9-2020 तक पूरी होनी चाहिए थी, जो कि कल थी. क्या सरकार बताएगी कि वो दायित्व पूरा हुआ कि नहीं? क्या CAG ने ‘जटिल समस्याओं का पिटारा’ खोलने वाली रिपोर्ट दी है?
गौरतलब है कि जब मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल विमानों को लेकर नई डील की थी तब से ही इसपर राजनीतिक बवाल जारी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मसले पर अगुवाई करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोपों की झड़ी लगा दी थी और डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. 2019 का लोकसभा चुनाव भी इसी मसले पर लड़ा गया.
अब जब फ्रांस से राफेल की पहली किस्त भारत आ गई है और चीन की सीमा पर उड़ान भर रहे हैं. तब एक बार फिर राजनीति गर्मा गई है. दरअसल, मॉनसून सत्र के दौरान संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में राफेल विमान के ऑफसेट करार की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में दसॉल्ट एविएशन को नाकाम बताया गया है.