न्यूज़ डेस्क: उच्चतम न्यायालय में केंद्र ने दिल्ली की आप सरकार पर आरोप लगाया है कि वह समानांतर राशन वितरण प्रणाली चलाने का प्रयास कर रही है। साथ ही उसने उच्च न्यायालय के 27 सितंबर के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें दिल्ली सरकार को उचित मूल्य की दुकानों के जरिये आपूर्ति किए जाने वाले अनाज या आटा को रोकने या कटौती नहीं करने को कहा गया है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ के समक्ष मंगलवार को यह मामला सुनवाई के लिए आया लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता द्वारा समय मांगे जाने पर इसकी सुनवाई 12 नवंबर तक टाल दी गई। केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने उसे अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बगैर ही 22 मार्च का आदेश पलट दिया है और दिल्ली सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की 2013 के तहत उचित मूल्य की राशन की दुकानों की खाद्यान्न में कटौती की अनुमति दे दी।
केंद्र ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने 22 मार्च के आदेश में दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वह ‘मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना’ लागू करते वक्त मौजूदा जनवितरण प्रणाली के तहत दुकानों को दिये जाने वाले खाद्यान्नों की आपूॢत में कटौती नहीं करें या उसे रोके नहीं। हालांकि, उच्च न्यायालय ने 27 सितंबर को फैसले में संशोधन किया और बिना यह विचार किए फैसले को पलट दिया कि दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के तहत प्राप्त संसाधनों का इस्तेमाल कर समानांतर राशन वितरण योजना शुरू करने की कोशिश है और इसका दुष्प्रभाव अधिनियम के लाभार्थियों पर पड़ सकता है।’’
याचिका में केंद्र ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश केवल दिल्ली सरकार के वकील के तर्कों के आधार पर पारित किया और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के प्रावधानों पर गौर नहीं किया जिसका दुष्परिणाम मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना के लागू होने से पड़ सकता है। केंद्र सरकार ने कहा उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार की योजना को लागू करने संबंधी पेश सामग्री का विश्लेषण करने में भी गलती की जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के प्रावधानों के एकदम विपरीत है।