उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों में समूह ख और समूह ग की भर्ती में पांच साल तक संविदा पर नियुक्ति के योगी सरकार के प्रस्ताव ने सूबे की सियासत में हलचल मचा दी है. बेरोजगारी के विषय को लगातार उठा रहे विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लपका है. विपक्षी दलों के बाद अब सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधियों ने भी मुखर विरोध करना शुरू कर दिया है. ऐसा मॉडल गुजरात में भी नरेंद्र मोदी ने सीएम रहते हुए 2006 में लागू किया था.
उत्तर प्रदेश में समूह ‘ख’ और ग’ की सरकारी नौकरियों में भर्ती के बाद पांच साल तक संविदा पर नियुक्ति के योगी सरकार के प्रस्ताव ने सूबे की सियासत में हलचल मचा दी है. बेरोजगारी के विषय को लगातार उठा रहे विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लपका है. विपक्षी दलों के बाद अब सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधियों ने भी मुखर विरोध करना शुरू कर दिया है. बीजेपी के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस प्रस्ताव को रद्द करने का अनुरोध किया है. आखिर संविदा प्रस्ताव में ऐसा क्या है जिसके खिलाफ विपक्ष से लेकर सत्तापक्ष तक आवाज बुलंद कर रहे हैं?
पांच साल के बाद पक्की होगी नौकरी
दरअसल, योगी सरकार ने सूबे में समूह ‘ख’ और ग’ की सरकारी नौकरी के लिए अब सीधे भर्ती करने के बजाय संविदा पर भर्ती की जाएगी. इसके तहत सरकार पहले भर्ती निकालेगी, जिसके तहत लोगों की नियुक्तियां होगी तो उन्हें पांच साल तक कॉन्ट्रैक्ट पर काम करना है. इन पांच साल में हर छह महीने पर एक टेस्ट लिया जाएगा, जिसमें कम से कम 60 फीसद अंक पाना अनिवार्य होगा. ऐसे में दो छमाही में इससे कम अंक लाने वाले लोगों को सेवा से बाहर कर दिया जाएगा. वहीं, पांचवें साल छह महीने की ट्रेनिंग भी दी जाएगी. संविदा पर नियुक्ति के दौरान मूल पदनाम के बजाय सहायक पदनाम दिया जाएगा. लेखपाल के लिए सहायक लेखपाल और शिक्षक के लिए सहायक शिक्षक.
5 साल तक नहीं मिलेगा सरकारी बेनिफिट
संविदा पर समूह ‘ख’ और समूह ‘ग’ के नियुक्ति होने वाले अभियार्थियों के लिए उत्तर प्रदेश की सरकारी सेवक अनुशासन व अपील नियमावली 1999 लागू नहीं होगी. इसके चलते उन्हें किसी भी तरह का सर्विस बेनिफिट नहीं दिया जाएगा. संविदा नियुक्ति के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद ही फिर उन्हें स्थायी तौर पर नियुक्ति मिल सकेगी. इस नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे योगी सरकार का तर्क ये है कि इससे कर्मचारियों की कार्य-क्षमता बढ़ेगी और सरकार पर आर्थिक बोझ भी कम होगा.
संविदा पर नौकरी करने वालों की संख्या
बता दें कि उत्तर प्रदेश में अप्रैल 2019 तक समूह ख के तहत कर्मचारियों की कुल संख्या 58,859 है. वहीं, समूह ग के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों की सूबे में कुल संख्या 817613 के करीब है. अभी सूबे में अलग-अलग संवर्ग की सेवा नियमावली के अनुसार नियुक्त की जाती है और उन्हें लाभ दिया जाता है. सरकारी नौकरी के लिए नियुक्ति हुए लोग एक से दो साल के प्रोबेशन पर सीनियर अधिकारियों की निगरानी में काम करते हैं. इस दौरान उन्हें वेतन और दूसरे सभी सर्विस बेनिफिट के लाभ दिए जाते हैं. प्रोबेशन का कार्य पूरा होने पर इन कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाता है.
विपक्ष ने खड़े किए सवाल
उत्तर प्रदेश सरकार के संविदा पर नियुक्ति के प्रस्ताव को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहे हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान जारी कहा था कि सरकार बंधुआ मजदूर बनाना चाहती है. अखिलेश ने कहा था कि समूह ख और ग की भर्ती प्रक्रिया में बदलाव किया जा रहा है, जिससे सरकारी नौकरियों में भी ठेका प्रथा लागू हो जाएगी. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का इरादा है कि भविष्य में सुरक्षित नौकरी किसी को न मिले. कर्मचारी को संविदा काल में पहले सहायक पदनाम से नियुक्ति मिलेगी. दक्षता परीक्षा में 60 फीसदी से कम अंक आने पर सेवा समाप्त हो जाएगी. इस तरह संविदा के दौरान कर्मचारी पूरी तरह बंधुआ मजदूर बनकर रहेंगे.
वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी सरकार के इस प्रस्ताव पर जोरदार विरोध जताते हुए कहा था कि युवा नौकरी की मांग करते हैं और यूपी सरकार भर्तियों को पांच साल के लिए संविदा पर रखने का प्रस्ताव ला देती है. ये जले पर नमक छिड़ककर युवाओं को चुनौती दी जा रही है. गुजरात में यही फिक्स पे सिस्टम है. वर्षों सैलरी नहीं बढ़ती, परमानेंट नहीं करते. युवाओं का आत्मसम्मान नहीं छीनने देंगे. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि देश और प्रदेश में भयंकर रूप से बढ़ती बेरोजगारी और लगातार गिरती अर्थव्यवस्था से युवाओं का भविष्य खतरे में है. ऐसे समय में प्रदेश की योगी सरकार द्वारा नई नियुक्तियों को पहले पांच साल संविदा पर रखे जाने का प्रस्ताव लाया जाना छात्र-छात्राओं और युवाओं के साथ ऐतिहासिक अन्याय जैसा कृत्य है.
हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव आरके तिवारी ने स्पष्ट किया है कि सरकार के स्तर पर सतत सुधारात्मक विचार चलते रहते हैं. सरकारी नौकरी में संविदा को लेकर भी अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है. जब भी निर्णय किया जाएगा, वह जनहित, युवाओं का हित और प्रदेश का हित देखते हुए किया जाएगा. ऐसे में देखना है कि सरकार क्या संविदा पर नियुक्ति का प्रस्ताव पर अमल करती है या नहीं.
गुजरात में फिक्स सिस्टम
उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह से गुजरात मॉडल पर काम कर रही है. गुजरात में इसे ‘फिक्स पे सिस्टम’ कहा जाता है. यानी कि संविदा पर रखे गए कर्मचारियों को मिलने वाली तनख्वाह फिक्स रहती है. पांच साल या जितने भी समय के लिए कॉन्ट्रैक्ट होता है, उसी तनख्वाह पर काम करना होता है. इसकी शुरुआत हुई 1996 में जब बालगुरु योजना के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षकों को मिलने वाला वेतन फिक्स किया गया. 2006 में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी फिक्स पे नीति लेकर आए थे. इस दौरान नियुक्त होने वाले लोगों को मामूली सेलरी मिलती थी, जिसे 2012 में गुजरात हाईकोर्ट ने फिक्स पे सिस्टम को गैर कानूनी घोषित कर दिया था और पूरा वेतन देने का आदेश दिया था.